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कविता

टिकट काटती लड़की

संदीप तिवारी


हल्की पतली नाक
और चमकती आँख
गेहुँआ रंग, घने बालों में
हल्का होंठ हिलाकर बोली
चलो बरेली चलो बरेली
बस के अंदर टिकट काटती
टिकट बाँटती लड़की...
गले में काला झोला टाँगे
हँस-हँस कर बढ़ती है आगे
बहुत आहिस्ता पूछ रही है
कहाँ चलोगे?
कान के ऊपर फँसा लिया है
उसने एक कलम
हँसकर शायद छिपा लिया है
अपना सारा गम
उसी कलम से लिखती जाती
बीच-बीच में राशि बकाया,
बहुत देर से समझ रहा हूँ
उसकी सरल छरहरी काया...
बस के अंदर कोई फिल्मी गीत बजा है
देखो कितना सही बजा है...
"तुम्हारे कदम चूमे ये दुनिया सारी
सदा खुश रहो तुम दुआ है हमारी।"
घूम के देखा अभी जो उसको,
टिकट बाँटकर
सीट पे बैठे
पता नहीं क्या सोच रही है
किसके आँसू पोंछ रही है
कलम की टोपी नोच रही है...!


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